बुधवार, 29 सितंबर 2010

प्रार्थना इतनी है रब्बा !




रक्त


में

रंगा



हो




आदमी

नंगा



हो




प्रार्थना

इतनी

है

रब्बा




अब

कहीं

दंगा



हो

रविवार, 26 सितंबर 2010

जिसने कहा था मेरा है लम्बा सफ़र बहुत, ज़ंजीर खींच कर वो मुसाफ़िर उतर गया




साहित्य पथ के सुपरिचित माइल स्टोन

कन्हैया लाल नन्दन नहीं रहे

विनम्र श्रद्धांजलि !



जिसने कहा था

मेरा
है लम्बा सफ़र बहुत,


ज़ंजीर खींच कर

वो
मुसाफ़िर उतर गया




गुरुवार, 23 सितंबर 2010

लोग नमक घिसने लगते हैं




रिश्ते जब रिसने लगते हैं

तो परिजन पिसने लगते हैं


मत दिखलाना घाव किसी को

लोग नमक घिसने लगते हैं




मंगलवार, 21 सितंबर 2010

दूसरे दिन सुबह पता चला तो सुख हुआ




रात को

कुत्तों ने भौंक - भौंक कर नींद ख़राब कर दी,

इस से भलेमानसों को दुःख हुआ


लेकिन

उस
भौंकने से आये हुए चोर भाग गये,

ऐसा दूसरे दिन सुबह पता चला तो सुख हुआ


- विनोबा भावे



रविवार, 19 सितंबर 2010

यदि अपने स्वभाव पर अडिग रहता तो बेहतर था





जिस प्रकार

हवा

हाथों के इशारे नहीं समझती


आग

आँखों से डरा नहीं करती


पानी

आँचल में क़ैद नहीं हो सकता


अम्बर

किसी एक का हो नहीं सकता


वसुधा

अपनी ममता त्याग नहीं सकती

वो

सिर्फ़ देना जानती है, मांग नहीं सकती


उसी प्रकार

मनुष्य भी

यदि अपने स्वभाव पर अडिग रहता तो बेहतर था

परन्तु इसने निराश किया


अतः परिणाम बहुत ही मारक हो गया

संवर्धन करने वाला ही संहारक हो गया




शुक्रवार, 17 सितंबर 2010

मैं तो फ़क़त इल्तज़ा कर सकता हूँ..........




गन्ध ये बारूद की है शायद

जिसे सहना मेरे बूते से बाहर है

लेकिन मैं सह रहा हूँ

कर कुछ नहीं सकता

इसलिए सिर्फ़ कह रहा हूँ

कि हटादो ये कुहासा

क्योंकि इस सियाह आलम में

महज़ हैवानियत पलती है

बन्दगी को खतरा है


मौत के इस खेल में

ज़िन्दगी को खतरा है


दुनिया पर कब्ज़ा करने की खूंफ़िशां मन्शा वालो !

खबरदार !

तुम ही नहीं, तुम्हारी पुश्तों को भी ले डूबेगी

तुम्हारी खुदगर्ज़ी .........

मैं तो फ़क़त इल्तज़ा कर सकता हूँ

आगे तुम्हारी मर्ज़ी ...............





शनिवार, 11 सितंबर 2010

आज मेरे हिन्दोस्तान ने असली तिरंगा फहराया है


तन हर्षाया

मन हर्षाया

घर-आँगन हर्षाया है

ऐसा अवसर आया है

एक के घर केशरिया रंग में विघ्नहर्ता की स्थापना

धवल वस्त्र में दूजे के घर संवत्सरी का क्षमापना

तीजे घर में ईद मुबारक, हरियाला क्षीर-खुरमा बना


रंगों की गांठें खुल गईं और गुल ख़ुशी के खिल गये

हम मिले या मिले, हमारे त्यौहार गले मिल गये


मन्दिर की केसरी

दैरासर की श्वेत

और

मस्जिद की हरी ध्वजा ने दुनिया को दिखलाया है

आज मेरे हिन्दोस्तान ने असली तिरंगा फहराया है

गुरुवार, 9 सितंबर 2010

मैं बेचता हूँ सिर्फ़ पसीना...........





हाँ
हाँ

मैंने बेचा है

बेचा है लोहू जिगर का

बेचा है नूर नज़र का

लेकिन

ईमान नहीं बेचा

मैं खाक़ हूँ ...पर पाक हूँ

मेहनतकशी की नाक हूँ

तुम सा नहीं जो वतन को

शान्ति-चैन--अमन को

माँ भारती के बदन को

पीड़ितजनों के रुदन को

कुर्सी की खातिर

गैरों के हाथ बेच डालूँ

सत्ता के तलवे चाटूं

और चाँदी का जूता खाने के लिए

अपना ज़मीर बेच डालूं


अरे भ्रष्टाचारियों !

मैं बेचता हूँ सिर्फ़ पसीना

वो भी अपना !

और अपना ही वक़्त बेचता हूँ

पेट भराई के लिए

लेकिन इन्सानियत नहीं बेचता

किसी भी क़ीमत पर नहीं बेचता

क्योंकि मैं

मज़दूर हूँ .....लीडर नहीं !

गरीब हूँ ...काफ़िर नहीं !






















बुधवार, 8 सितंबर 2010

ये औरत, आज की औरत है ! इस्पात से बनी है




महक ये कहती है कि गुलात से बनी है

कार्तिक के शबनमी क़तरात से बनी है

नाज़ुकी ऐसी, गोया जज़्बात से बनी है

पर ये सब कयास है

पूरी तरह बकवास है


क्योंकि तज़ुर्बा कहता है कि

दर्दात
से बनी है


ज़र्फ़ से, ज़ुर्रत से, ज़ोर के

हालात
से बनी है


सुबहा जिसकी सकी,

उस
रात से बनी है


ये औरत,

आज
की औरत है !

इस्पात
से बनी है


इसलिए........................

ज़ुल्म मत कर इस पर

तू इसका एहतराम कर


सारी ख़ुदाई इसकी है,

तू रोज़ इसे सलाम कर

मंगलवार, 7 सितंबर 2010

देस की ख़ुशबू बसी है उसके हैप्पी होम में, ओम हैं उसमे बसे और वो बसी है ओम में




सुप्रसिद्ध कवयित्री, कथाकार, उपन्यासकार एवं अभिनेत्री

डॉ सुधा ओम ढींगरा के जन्म दिवस पर

रचित एक आत्मिक रचना



करुणा उसका शाश्वत स्वभाव है

पिता के आदर्शों का गहरा प्रभाव है


सम्वेदना सदैव शोणित में बहती है

सचाई उसके सपनों तक में रहती है


जनेता के आँचल का अनमोल मोती है

ऐसी बेटियां अपनी माँ का प्रतिरूप होती हैं


देस की ख़ुशबू बसी है उसके हैप्पी होम में

ओम हैं उसमे बसे और वो बसी है ओम में


सुख - समृद्धि - स्नेह से सुन्दर सजाये रास्ते

माँ से भी कुछ ज़्यादा माँ है वो विभु के वास्ते


मित्रता में वो कृष्ण से कम नहीं है

वो अगर है संग तो कुछ ग़म नहीं है


सुधा है नाम उसका, वो सुधा ही बांटती है

फूल बिखराती है जग में और कांटे छांटती है


शुभ घड़ी फिर उसके आँगन आज आई

जन्मदिन की 'अलबेला' लिखता बधाई

सोमवार, 6 सितंबर 2010

फिर नयी ऋतु में मिलेंगे




अब
बात रहने दो

जज़्बात बहने दो

टूट जाने दो किनारे

छूट जाने दो सहारे

डूब कर जी लें ज़रा सा

ये ज़हर पी लें ज़रा सा

ज़िन्दगी की शाम कर लें

कुछ घड़ी आराम कर लें

फिर नयी ऋतु में मिलेंगे

फिर नये गुलशन खिलेंगे

देह भी अब थक चुकी है

रूह भी तो पक चुकी है

वस्ल का एतमाद रखना

फिर मिलेंगे याद रखना

किसी ख़ुशनुमा मौसम में...........

किसी ख़ुशनुमा आलम में .........

शीराज़ा नाग अभी चारों तरफ़

लगी है आग अभी चारों तरफ़

इसे बुझ जाने दो

इसे बुझ जाने दो

इसे बुझ जाने दो

रविवार, 5 सितंबर 2010

इसलिए आज कविता नहीं, कोलाहल है




खरगोश
की उछाल

मृग की कुलांच

बाज़ की उड़ान

शावक की दहाड़

शबनम की चादर

गुलाब की महक

पीपल का पावित्र्य

तुलसी का आमृत्य

निम्बू की सनसनाहट

अशोक की लटपटाहट

_______ये सब अब कहाँ सूझते हैं कविता करते समय


अब तो

आदमी का ख़ून

बाज़ार की मंहगाई

खादी का भ्रष्टाचार

संसद का हंगामा

ग्लोबलवार्मिंग

प्रदूषण

और कन्याओं की भ्रूण हत्या ही हावी है मानस पटल पर


दृष्टि जहाँ तक जाती है,

हलाहल है

इसलिए आज कविता नहीं,

कोलाहल है