शनिवार, 23 जनवरी 2010

गुलामी दुनिया का सबसे घृणित पाप है -नेताजी



गुलामी

पूर्ण अन्याय की एक व्यवस्था है

और दुनिया का

सबसे घृणित पाप है



मनुष्य का जीवन

इसलिए है

कि वह

अत्याचार के खिलाफ लड़े



- नेताजी सुभाष चन्द्र बोस


गुरुवार, 21 जनवरी 2010

मेरा तेवर - मेरा ज़ेवर



मशक्कत


मेरा तेवर है


ज़ुर्रत

मेरा ज़ेवर है


मैं इन्हें बदरंग नहीं होने दूंगा


प्रयास

लाख असफल हों

मेरे



पर

उत्साह भंग नहीं होने दूंगा

www।albelakhatri.com


बुधवार, 20 जनवरी 2010

माता शारदा बजायेगी सितार मेरे मेरे देश में.......



कुछ ही दिनों का

मेहमान है ये पतझड़,

देखो आने वाली है बहार मेरे देश में



शीतल हवायें और

मादक फिजायें बन्धु

झूम-झूम गायेंगी मल्हार मेरे देश में



कितना सुकून, कितना

आनन्द होगा जब

खुशियों के फूटेंगे अनार मेरे देश में


सुख की सरिता में

कमल पे सवार माता

शारदा बजायेगी सितार मेरे मेरे देश में



-------------------वैसे तो शारदा माता वीणा बजाती हैं

लेकिन उनका मूड हो तो सितार क्या गिटार भी

बजा सकती हैं ..हा हा हा हा



रविवार, 17 जनवरी 2010

लौट जाना इस तरह कि टूट जाए हर सगाई..........




रात ये

मधुरात सी


मधुरात सी

बारात सी


बारात सी

बरसात सी


बरसात सी

जज़्बात सी


जज़्बात सी

उत्पात सी


उत्पात सी

आघात सी


आघात सी

हालात सी


_____हालात तुम बिन क्या हुए हैं देख लो...........

_____क्या थे, क्या हम हो गए हैं देख लो...........


देख लो इक बार कर आशियाना

फिर तुम्हारा जी करे तो लौट जाना


लौट जाना इस तरह कि टूट जाए हर सगाई

तू अगर राज़ी है इसमे, मेरी भी इसमे रज़ाई

मेरी भी इसमे रज़ाई

मेरी भी इसमे रज़ाई

मेरी भी इसमे रज़ाई






शुक्रवार, 15 जनवरी 2010

बड़ा ही टुच्चा ग्रहण था



ग्रहण ?

ये ग्रहण था ?


अगर था

तो बड़ा ही टुच्चा ग्रहण था


जो यूँ लगा और यूँ उतर गया

कोई निशां नहीं, किधर गया


लेकिन

दिन भर बवाल मचा रखा था

सारी दुनिया को नचा रखा था

समाचार वालो ने !

ज्योतिष वालो ने !



अरे !

ग्रहण ग्रहण क्या चिल्लाते हो ?

ग्रहण तो लगे ही हुए हैं हमारी ज़िन्दगी में

लगातार

लेकिन आपको दिखते नहीं हैं

इसलिए आप लिखते नहीं हैं



देखो !

गिनो !

कितने ग्रहण लगे हैं .........


त्यौहारों पर तनाव का

सम्बन्धों में दुराव का

भाषा पर अलगाव का

नदियों पर टकराव का

खेतों में सूखे का देखो, बस्तियों में बाढ़ का

मुआवज़े के मांस पे नेताओं की ख़ूनी दाढ़ का

दूध में मिलावट का तो राशन पर महंगाई का

अस्पतालों के बाहर बिकती नकली दवाई का


कितने ?

कितने ग्रहण लगे हैं हम पर........


पर तुम्हें दिखाई देंगे.........

क्योंकि वहाँ केवल संघर्ष है, सनसनी नहीं है

बस मन है रोता हुआ, वहां हवाई मनी नहीं है



-अलबेला खत्री




मंगलवार, 12 जनवरी 2010

भूतपूर्व भाजपाईजी के नाम कुछ अभूतपूर्व काइकू




किताब लिखो

पर ज़रूरी नहीं

ख़राब लिखो



ख़राब लिखो

पर किसने कहा

किताब लिखो



कमाल किया

किताब नहीं लिखी

बवाल किया



एहसास है ?

भूगोल नहीं है ये

इतिहास है



इतिहास में

छेड़ नहीं करते

परिहास में



जस ले बैठे

तरने की चाह में

बस ले बैठे




पारा गिरा है ?


ना रे ना भाजपा का

तारा गिरा है



राजधानी में

गिर गई उनकी

भैंस पानी में



सियासी एडो !

भूत बन जाओगे

जिन्न ना छेड़ो


-अलबेला खत्री




शनिवार, 9 जनवरी 2010

करगिल शहीदों के सम्मान में तिरंगे की भावाभिव्यक्ति पर अलबेला खत्री के शब्दों को स्वर दिया साधना सरगम ने...

जब कभी दुनिया में ख़ुद को तन्हा पाओगी प्रिये !




आपके भी होंठ इक दिन,

गीत गायेंगे मेरे

नींद होगी आपकी पर

ख्वाब आयेंगे मेरे


आपके भी...


जागेगी जिस दम जवानी, जिस्म लेगा करवटें

रात भर तड़पोगी, बिस्तर पर पड़ेंगी सलवटें

आँखें होंगी आपकी पर

आँसू आयेंगे मेरे

आपके भी...



जब कभी दर्पण में देखोगी ये कुन्दन सा बदन

ख़ूब इतराओगी इस मासूमियत पर मन ही मन

मद तो होगा आप पे, पग

डगमगायेंगे मेरे


आपके भी...



राह चलते आपको गर लग गई ठोकर कभी

ख़ाक़ कर दूंगा जला कर, राह के पत्थर सभी

पांव होंगे आपके पर

घाव पायेंगे मेरे


आपके भी...



जब कभी दुनिया में ख़ुद को तन्हा पाओगी प्रिये

जब शबे-फुर्कत में दिल मचलेगी साथी के लिए

आप अपने आप को तब

पास पायेंगे मेरे



आपके भी...



गुरुवार, 7 जनवरी 2010

जीने की जो चाह है तो मौत से भी नेह कर




रात न ढले तो कभी



भोर नहीं होती बन्धु


सांझ न ढले तो कभी तम नहीं होता है




लोहू तो निकाल सकता


तेरे पाँव में से


कांच से मगर घाव कम नहीं होता है




जीने की जो चाह है तो


मौत से भी नेह कर


डरते हैं वो ही जिनमें दम नहीं होता है




सच मानो जब तक


पीर का काग़ज़ न हो


कवि की कलम का जनम नहीं होता है




बुधवार, 6 जनवरी 2010

गुरूपर्व के परम पावन अवसर पर हिन्दू और हिन्दूत्व के रक्षक दशमेश श्री गुरु गोबिन्दसिंहजी के श्रीचरणों में..




जिकर आफ़ाक़ न हुन्दा,

तां धरती दा बिन्दू किंवें होन्दा ?


जिकर होन्दा न अक्खां विच पाणी,

तां फेर सिन्धु किंवें होन्दा ?


हिन्दू अते सिक्ख विच फ़र्क करण वालयो ,

तवारीख कैन्दी


जिकर सिक्ख न होन्दा,

तां फेर हिन्दू हिन्दू किंवें होन्दा ?




शनिवार, 2 जनवरी 2010

अमृत पी ज़हर उगलता है आदमी




शूलों से जो डर-डर

चलता है आदमी तो

पांव नीचे फूलों को मसलता है आदमी


अन्न जैसे कंचन को

कूड़ा कर फैंकता है

अमृत पी ज़हर उगलता है आदमी


जाने किस बात की

अकड़ है जो ऐंठ -ऐंठ

दो-दो फीट ज़मीं से उछलता है आदमी


गौर से जो देखा बन्धु

मुझे ऐसा लगा जैसे

अपनी ही आग में उबलता है आदमी



शुक्रवार, 1 जनवरी 2010

कृतज्ञता ! कृतज्ञता ! कृतज्ञता !




जिन
से

यह देह मिली

देह को

स्नेह दुलार और विस्तार मिला


जीवन मिला

जीवन के पौधे नैतिकता का संचार मिला

श्रमशील और स्वाभिमानी रहने का संस्कार मिला


प्यार मिला

दुलार मिला

घर मिला

परिवार मिला

समाज
मिला .........संसार मिला


वो सब मिला बिन मांगे,

जो मुझे मांगना भी नहीं आता था

मुझे तब चलना सिखाया ....

जब रेंगना भी नहीं आता था

मैं नहीं भूला कुछ भी

आपको

आपकी सौगात को

उस काली रात को

जब आप चिरनिद्रा में सो गये

जिस का रात-दिन स्मरण करते थे

उसी परमपिता के हो गये

छोड़ गये

तोड़ गये सब बन्धन घर-परिवार के

देह के और दैहीय संसार के


काश! आज आप होते

तो मैं इतना तन्हा होता ..............

सच है

पूर्ण सच है ....

इसमें किसी को दो राय नहीं है

पिता का कोई पर्याय नहीं है

पिता का कोई पर्याय नहीं है


मैं नहीं जानता पुनर्जन्म होगा या नहीं

हुआ भी तो मानवदेह मिलेगा या नहीं

परन्तु

प्रार्थना नित यही करता हूँ

एक बार नहीं, बार बार ऐसा हो, हर बार ऐसा हो

मैं रहूँ पुत्र और आप ! हाँ .....आप ही मेरे पिता हो


आप ही आराध्य मेरे

आप ही हैं देवता

कृतज्ञता !

कृतज्ञता !

कृतज्ञता !