गुरुवार, 18 मार्च 2010

इत्ते भर से गा लूँगा





मैं तुझे गाना चाहता हूँ

गुनगुनाना चाहता हूँ

बस..........


ज़रा कंठ सध जाये

ताल बैठ जाये

सुर लग जाये

और

मूड बन जाये



ज़िन्दगी !

ज़िन्दगी !

गीत हों हों

गीतकार का दर्द तो है

संगीत हो हो

सांस की झंकार तो है



मैं गा लूँगा

इत्ते भर से गा लूँगा

बस............



ज़रा कंठ सध जाये

ताल बैठ जाये

सुर लग जाये

और

मूड बन जाये



















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