शनिवार, 22 मई 2010

जिस थाली में खाना उसी में छेद करना .......हमारी विशेषता है





चन्दा रे चन्दा !


ओ चन्दा !

किस से सीखा ये धन्धा ?

हम से ही

सीखा होगा शायद


क्योंकि हमारे अलावा तो कोई

यह विद्या

जानता नहीं


अगर

जानता भी है तो

मानता नहीं



जिस थाली में खाना

उसी में छेद करना .......हमारी विशेषता है

जिसे तूने खूब अपनाया है

और आज

एक बार फ़िर

अपने आका

सूरज को ग्रहण लगाया है


यह घटना तो कुछ पल की है

सूरज

जल्दी ही

तेरे पंजे से निकल जाएगा


लेकिन

ग्रहण का यह पल

इतिहास में

अंकित हो गया है

और तू

सदा सदा के लिए

कलंकित

हो गया है

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गुरुवार, 20 मई 2010

आज की रात जीना चाहता हूँ





आज
की रात जीना चाहता हूँ

आबे - हयात पीना चाहता हूँ


इससे पहले

कि मैं तुम्हारे हुस्न के झूले में झूल जाऊं


इससे पहले

कि मैं अपने मुर्शिद की दरगाह भूल जाऊं


हटालो निगाह मुझसे.................

ज़ख्म पहले ही बहुत गहरे है ज़िन्दगानी में

आज एक घाव सीना चाहता हूँ

आज की रात जीना चाहता हूँ



सिलवटें बिस्तर की पड़ी रहने दो..........

दुनियादारी की खाट खड़ी रहने दो

क्या ख़ाक मोहब्बत है, क्या राख जवानी है

लम्हों की कहानी है यारा, हर शै यहाँ फ़ानी है


फ़ानी को पाना क्या

फ़ानी को खोना क्या


फ़ानी पर हँसना क्या

फ़ानी पर रोना क्या


जो चढ़के उतरे

वो जाम मयस्सर है


महबूब ने जो भेजा

पैग़ाम मयस्सर है


सुराही, मीना चाहता हूँ

आज की रात जीना चाहता हूँ


आज की रात जीना चाहता हूँ


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बुधवार, 19 मई 2010

सिंगार बन तू ख़ल्क का तो खालिकी मिल जायेगी





अदावत नहीं



दावत की बात कर



अलगाव की नहीं

लगाव की बात कर



नफ़रत नहीं

तू

उल्फ़त की बात कर


बात कर रूमानियत की

मैं सुनूंगा


बात कर इन्सानियत की

मैं सुनूंगा


मैं न सुन पाऊंगा तेरी साज़िशें

रंजिशें औ खूं आलूदा काविशें


किसने सिखलाया तुझे संहार कर !

कौन कहता है कि पैदा खार कर !

रे मनुज तू मनुज सा व्यवहार कर !


आ प्यार कर

आ प्यार कर

आ प्यार कर


मनुहार कर

मनुहार कर

मनुहार कर


सिंगार बन तू ख़ल्क का तो खालिकी मिल जायेगी

ख़ूब कर खिदमत मुसलसल मालिकी मिल जायेगी

पर अगर लड़ता रहेगा रातदिन

दोज़ख में सड़ता रहेगा रातदिन


किसलिए आतंक है और मौत का सामान है

आईना तो देख, तू इन्सान है ..... इन्सान है


कर उजाला ज़िन्दगी में

दूर सब अन्धार कर !


बात मेरी मानले तू

जीत बाज़ी,हार कर !


प्यार कर रे ..प्यार कर रे ..प्यार कर रे ..प्यार कर !

प्यार में मनुहार कर ..रसधार कर ... उजियार कर !


- अलबेला खत्री















मंगलवार, 18 मई 2010

ब्लोगवाणी से सबकी यारी हिन्दी चिट्ठाकारी में




टिप्पणियों
की मारामारी हिन्दी चिट्ठाकारी में

लेखन पर टिप्पणियां भारी हिन्दी चिट्ठाकारी में


द्वेषपूर्ण जुमलेबाज़ी को ढेरों पाठक मिल जाते

तरस रही रचना बेचारी हिन्दी चिट्ठाकारी में


चिट्ठाजगत के सारे साधक करें मोहब्बत गूगल से

ब्लोगवाणी से सबकी यारी हिन्दी चिट्ठाकारी में


पुरूष यहाँ केवल पुरूषों के लिए नहीं पर

सिर्फ नारी के लिए है नारी हिन्दी चिट्ठाकारी में


केवल दो पंक्ति लिख कर ही हो हल्ला कर देते हैं

ऐसे ऐसे यहाँ मदारी हिन्दी चिट्ठाकारी में


मज़हबवादों, बकवादों, उन्मादों से बचना मुश्किल

चलती है तलवार दुधारी हिन्दी चिट्ठाकारी में


कभी कभी तो पोस्ट देखके सोच में मैं पड़ जाता हूँ

ये रचना है या बीमारी हिन्दी चिट्ठाकारी में


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सोमवार, 17 मई 2010

थोक के भाव कविताई करने वालो ! कविता के बारे में भी कुछ तो कहो.......





कल
की पोस्ट में मैंने सबसे आग्रह किया था कि कृपा कर के

कविता की परिभाषा अपने शब्दों में लिखें और बताएं लेकिन

उतना प्रतिसाद नहीं मिला जितना मुझे अपेक्षित था



जो भी हो, मैं एक बार फिर प्रयास करता हूँ आज कुछ और

परिभाषाएं कविता की पोस्ट कर रहा हूँ यदि आपका

समर्थन इस काम को मिला तो ठीक वर्ना मैं इसकी अगली

कड़ी रोक दूंगा...........जो माल बिके ही नहीं, उसे बना कर भी

क्यों रखूं...हा हा हा हा हा हा



कविता क्या है ?


कल से आगे...................कड़ी क्रमांक 2




कविता भावनाओं से रंगी हुई बुद्धि है

- प्रोफ़ेसर विल्सन



कविता ईश्वर की इस प्रकार सेवा करने में है कि

शैतान नाराज़ हो.......

- फुलर



जो कविता वासना से पैदा होती है, हमेशा नीचा गिराती है;

वास्तविक हार्दिकता से पैदा हुई कविता हमेशा शरीफ़ और

ऊँचा बनाती है

- हॉपकिन्स



कविता की एक ख़ूबी से किसी को इनकार नहीं होगा कि वह

गद्य की अपेक्षा थोड़े शब्दों में अधिक बहती है

- वोल्टेर



कविता विचार का संगीत है जो हम तक वाणी के संगीत में आता है

- चैट फील्ड



कविता शैतान की नहीं, ईश्वर की शराब है

- एमर्सन



कविता के जजों समझने वालों की अपेक्षा हमें कवि ज़्यादा

मिलते हैं एक अच्छा सा पद्य समझने की अपेक्षा एक रद्दी

सा पद्य लिख लेना आसान है

- माउन्टेन



कविता स्वयं ईश्वर की चीज़ है उसने अपने पैगम्बरों को कवि

बनाया और जब हम कविता की अनुभूति करते हैं, प्रेम और

शक्ति में ईश्वर के समान हो जाते हैं

- बेली



जिससे आनन्द प्राप्त हो, वह कविता नहीं है.........

- जोबर्ट



कविता अपने दैवी स्रोत के सबसे ज़्यादा अनुरूप तब होती है

जबकि वह धर्म की शान्तिमयी धारा बहाती है

- वर्डस्वर्थ


प्यारे पाठकों से

विनती
है कि आप भी अपने विचार भेजें





















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शनिवार, 15 मई 2010

आदरणीय कवियों और कवयित्रियों !क्या आप एक नज़र इधर डालने की कृपा करेंगे





हज़ारों
हज़ार कवि हो चुके, लाखों लाख कवितायें लिखी

जा चुकीं........लेकिन आज भी यह प्रश्न जब उठता है कि

कविता क्या है ? तो अच्छे अच्छे कवि और लेखक

गोलमोल बातें करके शब्दजाल द्वारा कुछ ऐसा जवाब देते हैं

जिसका कोई मतलब नहीं होता ..........क्षमा कीजियेगा, मैं भी

उनमे से एक हूँ जो दो घंटे तक कविता सुना सकता हूँ लेकिन

कविता पर दो मिनट भी सटीक और सार्थक

नहीं बोल सकता .......


इसलिए आज से मैं इस ब्लॉग पर कविता के बारे में एक

जानकारीपूर्ण और उद्देश्यपूर्ण धारावाहिक चर्चा आरम्भ कर

रहा हूँ जिसमे आप पढेंगे कि दुनिया भर के विद्वानों ने

कविता के बारे में क्या कहा है ........


निवेदन ये है सभी से कि जब आप अपनी टिप्पणी करें तो

यह ज़रूर लिखें कि कविता के बारे में आप क्या सोचते हैं

इस प्रकार यह एक संकलन हो जायेगा जिसे पुस्तक के

रूप में प्रकाशित करके कविता की परिभाषायें उपलब्ध

करायेंगे।


ख़ास बात ये होगी कि इसमें पुराने विद्वान भी शामिल होंगे

और आज के कवि - ब्लोगर भी............


तो प्रस्तुत है पहली कड़ी...............इस पर आपकी टिप्पणी

ज़रूर मिलनी चाहिए ताकि मुझे लगे कि ऐसे विषय पर

काम करो, तो भी लोग पढ़ते और टिपियाते हैं


---



क्या है कविता ?


कविता छाया खड़ी करने की कला है ......... वह

किसी चीज़ को हस्ती प्रदान नहीं करती


- बर्क


कविता आत्मा का संगीत है और सबसे ज़्यादा

महान अनुभूतिशील आत्माओं का

वोल्टेर


कविता की कला भावनाओं को छूना है और उसका

कर्त्तव्य उन्हें सदगुण की ओर ले जाना है


- कूपर



सत्य से सत्य को सुन्दर से सुन्दर रूप देना कविता है


- श्रीमती ब्राउनिंग



उत्कृष्ट कवि की लाजवाब कविता भी बिना

राम नाम के शोभा नहीं देती जैसे कि सब तरह से

सजी हुई सर्वान्गसुन्दरी चंद्रमुखी स्त्री बिना वस्त्र के

शोभा नहीं पाती और अगर किसी कुकवि की सब गुण

रहित वाणी राम नाम के यश से अंकित हो तो

बुधजन उसे सुनते सुनाते हैं और सन्त लोग मधुकर

की तरह उसके गुण को ग्रहण करते हैं


- गोस्वामी तुलसीदास



कविता किससे बनी है ? एक भरे हुए हृदय से,

जो कि सद्भावना से लबालब भरा हो।


- गेटे


कविता का जामा पहन कर सत्य और भी चमक उठता है

- पोप


आपकी प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा में............

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शुक्रवार, 14 मई 2010

आँखों के पैमाने में शराब लायी हूँ .... गा कर पूजा गोपालन ने मदमस्त कर दिया ज़बरदस्त कर दिया ....




बहुत दिनों से मैंने मेरा कोई वीडियो नहीं लगायाऐसी शिकायतें

अनेक मित्रजन करते हैं तो लीजिये आज एक वीडियो लगा रहा हूँ

इसमें दिखूंगा तो मैं नहीं लेकिन दिखने वाली गायिका जो गीत गा

रही है वह लिखा हुआ मेरा ही है



टी वी चैनल पर सारेगाना प्रतियगिता के दूसरे वोल्यूम में सुश्री

पूजा गोपालन जिस गीत को गा कर विजयी हो गई वह मेरा

लिखा गीत थाआप चाहें तो सुश्री पूजा के साथ साथ मुझे भी

बधाई दे सकते हैं लेकिन बधाइयाँ बांटते समय छत्तीस गढ़ के

लाड़ले बेटे अर्णब चटर्जी को भूल जाना जिन्होंने गीत की

प्यारी सी धुन बनाई और संगीत दिया......



एक कैबरे गीत के रूप में लिखा गया गाना कितना शालीन

बन पड़ा है...देखिये और एन्जॉय कीजिये





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शुक्रवार, 7 मई 2010

मुबारक हो कसाब, तू जीत गया.....



मुबारक हो.....

मुबारक हो कसाब, तू जीत गया

भाग्य हमारा खराब, तू जीत गया



तू जीत गया हरामज़ादे !

भारत हार कर बैठा है

क्योंकि लोकतंत्र हमारा

कुंडली मार कर बैठा है



खोद ! खोद ! ख़ूब कब्र तू हमारी खोद !

तेरे तो दोनों हाथों में लड्डू हैं चादरमोद !


जब तलक ज़िन्दा रहेगा, जेल में आराम फ़रमायेगा

वीआईपी हत्यारा है ,

मन चाहा पिएगा - मन चाहा खायेगा

और कहीं सचमुच फांसी हो गई तो शहीद कहलायेगा


हाँ हाँ शहीद कहलायेगा तू अपने मुल्क नापाक का

एक एक बाल पुज जायेगा हरामखोर तेरी नाक का


हम तो भारतीय हैं

जंग में चाहे कितने बहाद्दुर हों, घर में तो पांगु हैं

क्योंकि स्वभाव से ही दयालु अर्थात डान्गु हैं


इसीलिए तुझ जैसे आंडू-पांडू भी हमें छील डालते हैं

और हमारे हरे-भरे घरों को दिनदहाड़े लील डालते हैं


काश !

काश !

सूअर की औलाद ...काश ! तू मेरे हाथ लग जाये......

वो करूँ तेरे साथ मैं....

कि तेरे मुर्दा पुरखे भी तड़प कर कब्रों में जग जाये .....



मैं तुझे फांसी नहीं दूँ

गोलियां भी नहीं मारूं

क्योंकि मौत तेरे लिए सज़ा नहीं मज़ा है

मौत मिल जाये ये तो ख़ुद तेरी भी रज़ा है



मैं तो तुझे ज़िन्दा रखूं ............

ज़िन्दगी भर गधा बना कर रखूं

और तेरी सवारी करूँ

चिलचिलाती धूप में, दहकती हुई सड़क पर,

नंगे पाँव, नंगे बदन, जब मेरा बोझ ढोयेगा

तो गधे के बीज ! तू ख़ून के आँसू रोयेगा


मैं तो रात - दिन तुझे कोल्हू पर लगा कर दौड़ाऊँ

सरसों के साथ साथ तेरा भी थोड़ा तेल निकलवाऊं



बहुत कुछ करना चाहता हूँ मैं तेरे साथ कमीने !

तुझ शैतान की संतान ने हमारे सुख-चैन छीने


लेकिन अफ़सोस रे.................................

अफ़सोस !


तू तक़दीर का बादशाह है, मुकद्दर का धनी है

सज़ा और वो भी कड़ी ? तेरे लिए कहाँ बनी है ?


उज्ज्वल निकम खुश हैं

क्योंकि पूरा भारत ख़ुशफ़हमी में पटाखे छोड़ रहा है

वो तो अलबेला खत्री पगला है जो माथा फोड़ रहा है


उड़ा उड़ा.........

ख़ूब मज़े उड़ा............

पहले वारदात करके सैकड़ों को मारा

और अरबों रुपयों का नुक्सान किया

अब तेरे रखरखाव

और सुनवाई पर करोड़ों खर्च हो रहा है

यानी सब कुछ तेरे ही हक़ में हो रहा है


पाकिस्तान खड़ा खड़ा मुस्कुरा रहा है

क्योंकि उसका

एक मामूली लौंडा भी गज़ब ढा रहा है

पूरी पलटन का काम तू अकेला कर रहा है

और नुक्सान .....हिन्दुस्तान का अवाम भर रहा है


लगा रह चादरमोद ! लगा रह ...........

तुझे हक़ है..हक़ है पाकिस्तान में पैदा होने का

काश !

हमें भी मौका मिल जाये वतन पे शैदा होने का


छोड़ो अलबेला ...........

जाने दो....

कौन सुनता है ?
















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