अदावत नहीं
आ
दावत की बात कर
अलगाव की नहीं
आ
लगाव की बात कर
नफ़रत नहीं
तू
उल्फ़त की बात कर
बात कर रूमानियत की
मैं सुनूंगा
बात कर इन्सानियत की
मैं सुनूंगा
मैं न सुन पाऊंगा तेरी साज़िशें
रंजिशें औ खूं आलूदा काविशें
किसने सिखलाया तुझे संहार कर !
कौन कहता है कि पैदा खार कर !
रे मनुज तू मनुज सा व्यवहार कर !
आ प्यार कर
आ प्यार कर
आ प्यार कर
मनुहार कर
मनुहार कर
मनुहार कर
सिंगार बन तू ख़ल्क का तो खालिकी मिल जायेगी
ख़ूब कर खिदमत मुसलसल मालिकी मिल जायेगी
पर अगर लड़ता रहेगा रातदिन
दोज़ख में सड़ता रहेगा रातदिन
किसलिए आतंक है और मौत का सामान है
आईना तो देख, तू इन्सान है ..... इन्सान है
कर उजाला ज़िन्दगी में
दूर सब अन्धार कर !
बात मेरी मानले तू
जीत बाज़ी,हार कर !
प्यार कर रे ..प्यार कर रे ..प्यार कर रे ..प्यार कर !
प्यार में मनुहार कर ..रसधार कर ... उजियार कर !
दिल को छू जाने वाली रचना है. बहुत खूब!
जवाब देंहटाएंहमारे ब्लॉग पर आज का समय तथा सामुदायिक रिश्तों पर आधारित हमारी ग़ज़ल "दो दिल जुदा हुए हैं" अवश्य पढ़ें.
http://premras.blogspot.com/2010/05/ghazal_19.html
बहुत ही सार्थक रचना!
जवाब देंहटाएंक्या बात है ! बहुत बढिया आह्वान .
जवाब देंहटाएंअलगाव की नहीं
जवाब देंहटाएंआ
लगाव की बात कर
दिस इज़ व्हाट अलबेला खत्री इज़!
सलाम सर!
अलगाव की नहीं ... आ ..लगाव की बात कर !
बात मेरी मानले तू
जवाब देंहटाएंजीत बाज़ी,हार कर !
आज तो दिल छूने वाली बात कही है
बहुत सुन्दर
अलगाव की नहीं आ
जवाब देंहटाएंलगाव की बात कर
Bahut khoob !
waah sir shabdon ka jaadoo...adbhut...
जवाब देंहटाएंबेहतरीन मंचीय कविता अलबेला जी.. पढ़ कर कल्पना कर रहा था आप कैसे मंच पर पढेंगे इसे.. :)
जवाब देंहटाएंक्या बात है , बहुत ही सुन्दर ।
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