बुधवार, 19 मई 2010

सिंगार बन तू ख़ल्क का तो खालिकी मिल जायेगी





अदावत नहीं



दावत की बात कर



अलगाव की नहीं

लगाव की बात कर



नफ़रत नहीं

तू

उल्फ़त की बात कर


बात कर रूमानियत की

मैं सुनूंगा


बात कर इन्सानियत की

मैं सुनूंगा


मैं न सुन पाऊंगा तेरी साज़िशें

रंजिशें औ खूं आलूदा काविशें


किसने सिखलाया तुझे संहार कर !

कौन कहता है कि पैदा खार कर !

रे मनुज तू मनुज सा व्यवहार कर !


आ प्यार कर

आ प्यार कर

आ प्यार कर


मनुहार कर

मनुहार कर

मनुहार कर


सिंगार बन तू ख़ल्क का तो खालिकी मिल जायेगी

ख़ूब कर खिदमत मुसलसल मालिकी मिल जायेगी

पर अगर लड़ता रहेगा रातदिन

दोज़ख में सड़ता रहेगा रातदिन


किसलिए आतंक है और मौत का सामान है

आईना तो देख, तू इन्सान है ..... इन्सान है


कर उजाला ज़िन्दगी में

दूर सब अन्धार कर !


बात मेरी मानले तू

जीत बाज़ी,हार कर !


प्यार कर रे ..प्यार कर रे ..प्यार कर रे ..प्यार कर !

प्यार में मनुहार कर ..रसधार कर ... उजियार कर !


- अलबेला खत्री















9 टिप्‍पणियां:

  1. दिल को छू जाने वाली रचना है. बहुत खूब!


    हमारे ब्लॉग पर आज का समय तथा सामुदायिक रिश्तों पर आधारित हमारी ग़ज़ल "दो दिल जुदा हुए हैं" अवश्य पढ़ें.

    http://premras.blogspot.com/2010/05/ghazal_19.html

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  2. अलगाव की नहीं

    लगाव की बात कर

    दिस इज़ व्हाट अलबेला खत्री इज़!
    सलाम सर!
    अलगाव की नहीं ... आ ..लगाव की बात कर !

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  3. बात मेरी मानले तू
    जीत बाज़ी,हार कर !
    आज तो दिल छूने वाली बात कही है
    बहुत सुन्दर

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  4. अलगाव की नहीं आ
    लगाव की बात कर
    Bahut khoob !

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  5. बेहतरीन मंचीय कविता अलबेला जी.. पढ़ कर कल्पना कर रहा था आप कैसे मंच पर पढेंगे इसे.. :)

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  6. क्या बात है , बहुत ही सुन्दर ।

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