रविवार, 10 अक्तूबर 2010
केवल 13 घंटे शेष बचे हैं, कृपया जल्द से जल्द अपनी रचना भेजिए व 900 रुपये पुरस्कार प्राप्त कीजिये
प्यारे ब्लोगर साथियो !
हम सब सरस्वती और शब्द-ब्रह्म के साधक उपासक हैं, संयोग से
अभी शारदीय नवरात्र भी चल रहे हैं, ऐसे में यदि कोई स्पर्धा हो
जगत जननी माँ जगदम्बा के वन्दन की, तो क्या हमें बढ़ चढ़ कर
भाग नहीं लेना चाहिए ? लेना चाहिए न ? तो लीजिये............मैंने
कब मना किया ?
मैं तो केवल ये बता रहा हूँ कि इस स्पर्धा का परिणाम घोषित होने में
केवल 13 घंटे शेष बचे हैं इसलिए कृपया जल्द से जल्द अपनी रचना
भेजिए...और वाह वाही के साथ साथ 900 रुपये का नगद पुरस्कार
भी प्राप्त कीजिये।
स्पर्धा के बारे में यदि आपको जानकारी न हो तो ये लिंक देख लीजिये :
http://albelakhari.blogspot.com/2010/10/500-900.html
-अलबेला खत्री
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टिप्पणी में अपनी स्वरचित सरस्वती वन्दना प्रेषित कर रहा हूँ!
जवाब देंहटाएंसरस्वती वन्दना
शारदे माँ! आज मेरी वन्दना स्वीकार कर लो।
छा रहा अज्ञान का मन में अन्धेरा,
तम हरो कर दो उजाले का सवेरा,
दास की आराधना को मातु अंगीकार कर लो।
शब्द के आयाम में साहित्य दे दो,
भाव में मेरे सुखद लालित्य दे दो,
मैं बहुत नादान हूँ माता मुझे भी प्यार कर लो।
स्वरचित सरस्वती वन्दना
जवाब देंहटाएंरात-दिन मैं प्राण की वीणा बजाऊँ।
माँ तुम्हारी वन्दना के स्वर सजाऊँ।।
मैं सुमन बिन गन्ध का हूँ वाटिका में,
किस तरह यह पुष्प मन्दिर में चढ़ाऊँ।
माँ तुम्हारी वन्दना के स्वर सजाऊँ।।
मैं निबल हूँ आपका ही है सहारा,
थाम लो माँ हाथ मैं अपना बढ़ाऊँ।
माँ तुम्हारी वन्दना के स्वर सजाऊँ।।
दो मुझे वरदान तुम हे शारदे माँ!
आरती को अर्चना में गुन-गुनाऊँ।
माँ तुम्हारी वन्दना के स्वर सजाऊँ।।
साधना में मातु तुम विज्ञान भर दो, विश्व में मैं ज्ञान का दीपक जलाऊँ। माँ तुम्हारी वन्दना के स्वर सजाऊँ।।