शुक्रवार, 1 जनवरी 2010
कृतज्ञता ! कृतज्ञता ! कृतज्ञता !
जिन से
यह देह मिली
देह को
स्नेह दुलार और विस्तार मिला
जीवन मिला
जीवन के पौधे नैतिकता का संचार मिला
श्रमशील और स्वाभिमानी रहने का संस्कार मिला
प्यार मिला
दुलार मिला
घर मिला
परिवार मिला
समाज मिला .........संसार मिला
वो सब मिला बिन मांगे,
जो मुझे मांगना भी नहीं आता था
मुझे तब चलना सिखाया ....
जब रेंगना भी नहीं आता था
मैं नहीं भूला कुछ भी
न आपको
न आपकी सौगात को
न उस काली रात को
जब आप चिरनिद्रा में सो गये
जिस का रात-दिन स्मरण करते थे
उसी परमपिता के हो गये
छोड़ गये
तोड़ गये सब बन्धन घर-परिवार के
देह के और दैहीय संसार के
काश! आज आप होते
तो मैं इतना तन्हा न होता ..............
सच है
पूर्ण सच है ....
इसमें किसी को दो राय नहीं है
पिता का कोई पर्याय नहीं है
पिता का कोई पर्याय नहीं है
मैं नहीं जानता पुनर्जन्म होगा या नहीं
हुआ भी तो मानवदेह मिलेगा या नहीं
परन्तु
प्रार्थना नित यही करता हूँ
एक बार नहीं, बार बार ऐसा हो, हर बार ऐसा हो
मैं रहूँ पुत्र और आप ! हाँ .....आप ही मेरे पिता हो
आप ही आराध्य मेरे
आप ही हैं देवता
कृतज्ञता !
कृतज्ञता !
कृतज्ञता !
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बेजोड़ रचना ..भावों का शब्दों में ऐसा समावेस किया है आपने की बात ज़ेहन में कहीं अन्दर तक उतर जाती है ..दाद हाज़िर है क़ुबूल करें
जवाब देंहटाएंआपको और आपके सारे परिवार को आने वाला समय सुख, समृद्धि और स्वास्थ्य प्रदान करे।
जवाब देंहटाएंआंख भर आई ऐसी भावपूर्ण अभिव्यक्ति से।ये केवल कविता ही नही है बल्कि आपकी गहरी भावना से लबरेज है यह दर्द। सचही पिता अथाह समुद्र में दृढ दवीप है .
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