शुक्रवार, 15 जनवरी 2010
बड़ा ही टुच्चा ग्रहण था
ग्रहण ?
ये ग्रहण था ?
अगर था
तो बड़ा ही टुच्चा ग्रहण था
जो यूँ लगा और यूँ उतर गया
कोई निशां नहीं, किधर गया
लेकिन
दिन भर बवाल मचा रखा था
सारी दुनिया को नचा रखा था
समाचार वालो ने !
ज्योतिष वालो ने !
अरे !
ग्रहण ग्रहण क्या चिल्लाते हो ?
ग्रहण तो लगे ही हुए हैं हमारी ज़िन्दगी में
लगातार
लेकिन आपको दिखते नहीं हैं
इसलिए आप लिखते नहीं हैं
देखो !
गिनो !
कितने ग्रहण लगे हैं .........
त्यौहारों पर तनाव का
सम्बन्धों में दुराव का
भाषा पर अलगाव का
नदियों पर टकराव का
खेतों में सूखे का देखो, बस्तियों में बाढ़ का
मुआवज़े के मांस पे नेताओं की ख़ूनी दाढ़ का
दूध में मिलावट का तो राशन पर महंगाई का
अस्पतालों के बाहर बिकती नकली दवाई का
कितने ?
कितने ग्रहण लगे हैं हम पर........
पर तुम्हें दिखाई न देंगे.........
क्योंकि वहाँ केवल संघर्ष है, सनसनी नहीं है
बस मन है रोता हुआ, वहां हवाई मनी नहीं है
-अलबेला खत्री
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सही कहा...यह ग्रहण दिखता नहीं...
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