शनिवार, 2 जनवरी 2010
अमृत पी ज़हर उगलता है आदमी
शूलों से जो डर-डर
चलता है आदमी तो
पांव नीचे फूलों को मसलता है आदमी
अन्न जैसे कंचन को
कूड़ा कर फैंकता है
अमृत पी ज़हर उगलता है आदमी
जाने किस बात की
अकड़ है जो ऐंठ -ऐंठ
दो-दो फीट ज़मीं से उछलता है आदमी
गौर से जो देखा बन्धु
मुझे ऐसा लगा जैसे
अपनी ही आग में उबलता है आदमी
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वैसे ही जैसे खाना खाकर विष्टा निकालते हैं सब!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर धन्यवाद्
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