रविवार, 8 नवंबर 2009
इसमें दो राय नहीं है, पिता का कोई पर्याय नहीं है...
जिनसे
यह देह मिली
देह को दुलार मिला
शक्ति मिली,
संवर्धन और विस्तार मिला
जीवन मिला
जीवन के पौधे को
नैतिकता का संचार मिला
श्रमशील
और
स्वाभिमानी रहने का संस्कार मिला
प्यार मिला
दुलार मिला
घर मिला
परिवार मिला
समाज मिला .........संसार मिला
वो सब मिला बिन मांगे,
जो मुझे मांगना भी नहीं आता था
मुझे तब चलना सिखाया
....जब रेंगना भी नहीं आता था
मैं नहीं भूला कुछ भी
न आपको
न आपकी सौगात को
न उस काली रात को
जब आप चिरनिद्रा में सो गए
जिस का रात-दिन स्मरण करते थे
उसी परमपिता के हो गये
छोड़ गये
तोड़ गये
सब बन्धन घर-परिवार के
देह के और दैहीय संसार के
काश! आज आप होते
तो मैं इतना तन्हा न होता ..............
सच है
पूर्ण सच है ....
इसमें कोई भी दो राय नहीं है
पिता का कोई पर्याय नहीं है
पिता का कोई पर्याय नहीं है
मैं नहीं जानता
पुनर्जन्म होगा या नहीं
हुआ भी तो
मानवदेह मिलेगा या नहीं
परन्तु
प्रार्थना नित यही करता हूँ
एक बार नहीं,
बार बार ऐसा हो, हर बार ऐसा हो
मैं रहूँ पुत्र और
आप ! हाँ .....आप ही मेरे पिता हो
आप ही आराध्य मेरे
आप ही हैं देवता
कृतज्ञता !
कृतज्ञता !
कृतज्ञता !
-अलबेला खत्री
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प्रार्थना नित यही करता हूँ
जवाब देंहटाएंएक बार नहीं,
बार बार ऐसा हो, हर बार ऐसा हो
मैं रहूँ पुत्र और
आप ! हाँ .....आप ही मेरे पिता हो
आप ही आराध्य मेरे
आप ही हैं देवता
कृतज्ञता !
हर एक पंक्तियाँ दिल को छू गई ! बहुत ही सुंदर और भावपूर्ण रचना लिखा है आपने! माँ और पिताजी दोनों का स्थान कोई नहीं ले सकता और हम सभी को उन्हें भगवान समान मानना चाहिए जिनकी वजह से हम इस दुनिया में कदम रखें हैं और आज उन्हीं की वजह से हम इस मुकाम पर पहुंचे हैं! अत्यन्त सुंदर रचना खत्री जी!
उत्तम !
जवाब देंहटाएंMera sadar naman.
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