मंगलवार, 10 नवंबर 2009
एक छोरी बावरी सी मेरे गीतों की फ़ैन हो गई
एक गोरी सांवरी सी मेरे गीतों की फ़ैन हो गई
एक छोरी बावरी सी मेरे गीतों की फ़ैन हो गई
पनघट जाती-जाती गाए
जल भर लाती-लाती गाए
आती गाए, जाती गाए
सखियों से बतियाती जाए
पल में सौ बल खाती जाए
गीत वो मेरे गाती जाए
कितनी बेचैन हो गई, कितनी बेचैन हो गई ...
रे मेरे गीतों की ....
उसकी छैल छबीली आँखें
चंचल आँखें , कटीली आँखें
बिजली सी चमकीली आँखें
मोटी-मोटी मछीली आँखें
नीली और नशीली आँखें
आबे-हया से गीली आँखें
तीर्थ उज्जैन हो गईं, तीर्थ उज्जैन हो गईं ...
रे मेरे गीतों की ...
जब जब मेरी याद सताये
उसकी मोहब्बत अश्क़ बहाये
तन घबराये, मन घबराये
उसका अखिल यौवन घबराये
जग-जग सारी रैन बिताये
पल दो पल भी नींद न आये
रातें कुनैन हो गईं, उसकी रातें कुनैन हो गईं
रे मेरे गीतों की ...
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bahut sunder rachanaa
जवाब देंहटाएंvaah
par raaten kunain kyo ho gayee
पल में सौ बल !!!
जवाब देंहटाएंबलों की फ्रीक्वेंसी कुछ ज़्यादा ही नहीं हो गई ?...
:)
बहुत सुंदर रचना है भाई. आभार
Wah alabela jee is umr me ye tevar
जवाब देंहटाएंbadhai ho post our chhoree ke liye
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