शनिवार, 7 नवंबर 2009

काश ! मैं भी दीया होता..आरती का नहीं तो अर्थी का सही..



दीया


आरती का हो या अर्थी का


दोनों

अन्धेरा छाँटते हैं

उजाला बाँटते हैं


लेकिन विनम्रता देखिये दोनों की


तो कोई किसी पे हँसता है

ही कोई व्यंग्य कसता है

कोई वाद करते हैं, ही विवाद करते हैं

दीये बस रौशनी का जहाँ आबाद करते हैं



इनमें शायद हीरो बनने का कोई

झगड़ा नहीं है


इसीलिए दीयागीरी में TRP का

लफड़ा नहीं है


बस काम करते हैं अपना अपना

आखरी दम तक


खपा देते हैं ख़ुद को............

बे-गरज़

ये बेजान दीये


कभी

आरजू - - इनाम नहीं करते



जबकि हम जानदार

आलम फ़ाज़ल

इन्सान


बिना गरज़ के

कभी कोई भी काम नहीं करते


__________कदाचित इसीलिए



हमें बार बार मरने को

बार बार ज़िन्दा होना पड़ता है


छोटी छोटी दुनियावी बातों पर

बारहा शर्मिन्दा होना पड़ता है



मुझे भी भ्रम है कि मैं

अपने फ़न--हुनर से

उजाला बांटता हूँ


जबकि सच तो ये है कि

अपने वजूद के लिए

औरों को काटता हूँ



छि: शर्म आती है अपनी ही सोच पर

इन्सानियत को खा गया हूँ नोच कर


काश ! मैं भी दीया होता......

आरती का सही

अर्थी का ही सही.........................


- अलबेला खत्री





7 टिप्‍पणियां:

  1. दिये की लौ दुर तक प्रकाश फैलायेगी।

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  2. खुद को खुद में जाँच लें यह रचना का भाव।
    सदा बाँटना रौशनी दीप का यही स्वभाव।।

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    www.manoramsuman.blogspot.com

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  3. जीवितों को निर्जीवों की तुलना में जो भी गुण अधिक मिले .. मनुष्‍य को अन्‍य प्राणियों की तुलना में जो भी गुण अधिक मिले .. और मनुष्‍यों में भी किसी किसी को कुछ गुण अधिक मिले .. सब प्रकृति के किसी नियमानुसार ही हुए .. और हमें ये गुण संपूर्ण मानव जाति के कल्‍याण के लिए मिले होते हैं .. पर हम मनुष्‍यों में यह बहुत बडी खामी आयी है .. हम स्‍वार्थ में अंधे होते जा रहे हैं .. अहंकार को छोडने और इंसानियत को बनाए रखने की श्सिक्षा देती एक सुंदर रचना के लिए आपको बहुत बधाई !!

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  4. काश ! मैं भी दीया होता......
    आरती का न सही
    अर्थी का ही सही........
    बहुत सुंदर पंक्तियाँ ! आज के ज़माने में देखा जाए तो इंसान बहुत स्वार्थी हो गया है ! सब अपने काम के लिए संपर्क करते हैं और जब काम पूरा हो जाता है तो मुडके भी नही देखते ! इस भावपूर्ण और शानदार रचना के लिए ढेर सारी बधाइयाँ !

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  5. TRP shabad ka preyog is kavita mein accha laga......

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  6. सुन्दर भाव है.
    दीया का काम रोशनी बिखेरना है

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  7. Kash ham sab bhii diye banen.
    Ho sakta hai kya ????????
    Kitna sundar ho jaye.
    Chalo praytna to karo.
    Ek din DIIYE ka prakash door tak jayega.

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