गुरुवार, 7 जनवरी 2010

जीने की जो चाह है तो मौत से भी नेह कर




रात न ढले तो कभी



भोर नहीं होती बन्धु


सांझ न ढले तो कभी तम नहीं होता है




लोहू तो निकाल सकता


तेरे पाँव में से


कांच से मगर घाव कम नहीं होता है




जीने की जो चाह है तो


मौत से भी नेह कर


डरते हैं वो ही जिनमें दम नहीं होता है




सच मानो जब तक


पीर का काग़ज़ न हो


कवि की कलम का जनम नहीं होता है




6 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत बढ़िया!!!


    सच मानो जब तक
    पीर का काग़ज़ न हो
    कवि की कलम का जनम नहीं होता है

    जवाब देंहटाएं
  2. सच है! जो मौत से नेह नहीं लगा सकता वह जिंदगी से भी नेह नहीं लगा सकता।

    जवाब देंहटाएं
  3. वाह साब डरते वो है जो दम नहीं रखते ..सत्य वचन महाराज जी

    जवाब देंहटाएं
  4. जीने की जो चाह है तो


    मौत से भी नेह कर


    डरते हैं वो ही जिनमें दम नहीं होता है
    सचमुच जोश भरने वाली पंक्तियाँ है !!! लाजवाब!!!

    जवाब देंहटाएं
  5. हर एक पंक्तियाँ सच्चाई बयान करती है! बहुत सुन्दर लगा!

    जवाब देंहटाएं