रविवार, 5 सितंबर 2010
इसलिए आज कविता नहीं, कोलाहल है
खरगोश की उछाल
मृग की कुलांच
बाज़ की उड़ान
शावक की दहाड़
शबनम की चादर
गुलाब की महक
पीपल का पावित्र्य
तुलसी का आमृत्य
निम्बू की सनसनाहट
अशोक की लटपटाहट
_______ये सब अब कहाँ सूझते हैं कविता करते समय
अब तो
आदमी का ख़ून
बाज़ार की मंहगाई
खादी का भ्रष्टाचार
संसद का हंगामा
ग्लोबलवार्मिंग
प्रदूषण
और कन्याओं की भ्रूण हत्या ही हावी है मानस पटल पर
दृष्टि जहाँ तक जाती है,
हलाहल है
इसलिए आज कविता नहीं,
कोलाहल है
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
Wastvikta ko prastut karti tarkpurn aur vicharniy post. Bahut hi sundar bhaw preshan me puri tarah saksham. Badhai
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया प्रस्तुति ...
जवाब देंहटाएंआपकी आज चर्चा समयचक्र पर...
वेरी गुड पोस्ट!
जवाब देंहटाएं--
भारत के पूर्व राष्ट्रपति
डॉ.सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्म-दिन
शिक्षकदिवस की बहुत-बहुत शुभकामनाएँ!
बहुत बढिया अभिव्यक्ति है बधाई।
जवाब देंहटाएं