शुक्रवार, 17 सितंबर 2010

मैं तो फ़क़त इल्तज़ा कर सकता हूँ..........




गन्ध ये बारूद की है शायद

जिसे सहना मेरे बूते से बाहर है

लेकिन मैं सह रहा हूँ

कर कुछ नहीं सकता

इसलिए सिर्फ़ कह रहा हूँ

कि हटादो ये कुहासा

क्योंकि इस सियाह आलम में

महज़ हैवानियत पलती है

बन्दगी को खतरा है


मौत के इस खेल में

ज़िन्दगी को खतरा है


दुनिया पर कब्ज़ा करने की खूंफ़िशां मन्शा वालो !

खबरदार !

तुम ही नहीं, तुम्हारी पुश्तों को भी ले डूबेगी

तुम्हारी खुदगर्ज़ी .........

मैं तो फ़क़त इल्तज़ा कर सकता हूँ

आगे तुम्हारी मर्ज़ी ...............





1 टिप्पणी:

  1. दुनिया पर कब्ज़ा करने की खूंफ़िशां मन्शा वालो !

    खबरदार !

    तुम ही नहीं, तुम्हारी पुश्तों को भी ले डूबेगी

    तुम्हारी खुदगर्ज़ी .........
    बिलकुल सही सन्देश दिया है। बधाई।

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