साहित्य-सहवास
बुधवार, 29 सितंबर 2010
प्रार्थना इतनी है रब्बा !
रक्त
में
रंगा
न
हो
आदमी
नंगा
न
हो
प्रार्थना
इतनी
है
रब्बा
अब
कहीं
दंगा
न
हो
2 टिप्पणियां:
Pt. D.K. Sharma "Vatsa"
29 सितंबर 2010 को 11:26 pm बजे
आमीन्!
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कविता रावत
30 सितंबर 2010 को 8:07 am बजे
Yahi hamari bhi duwa hai..
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प्रार्थना इतनी है रब्बा !
जिसने कहा था मेरा है लम्बा सफ़र बहुत, ज़ंजीर खींच ...
लोग नमक घिसने लगते हैं
दूसरे दिन सुबह पता चला तो सुख हुआ
यदि अपने स्वभाव पर अडिग रहता तो बेहतर था
मैं तो फ़क़त इल्तज़ा कर सकता हूँ..........
आज मेरे हिन्दोस्तान ने असली तिरंगा फहराया है
मैं बेचता हूँ सिर्फ़ पसीना...........
ये औरत, आज की औरत है ! इस्पात से बनी है
देस की ख़ुशबू बसी है उसके हैप्पी होम में, ओम है...
फिर नयी ऋतु में मिलेंगे
इसलिए आज कविता नहीं, कोलाहल है
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