गुरुवार, 9 सितंबर 2010

मैं बेचता हूँ सिर्फ़ पसीना...........





हाँ
हाँ

मैंने बेचा है

बेचा है लोहू जिगर का

बेचा है नूर नज़र का

लेकिन

ईमान नहीं बेचा

मैं खाक़ हूँ ...पर पाक हूँ

मेहनतकशी की नाक हूँ

तुम सा नहीं जो वतन को

शान्ति-चैन--अमन को

माँ भारती के बदन को

पीड़ितजनों के रुदन को

कुर्सी की खातिर

गैरों के हाथ बेच डालूँ

सत्ता के तलवे चाटूं

और चाँदी का जूता खाने के लिए

अपना ज़मीर बेच डालूं


अरे भ्रष्टाचारियों !

मैं बेचता हूँ सिर्फ़ पसीना

वो भी अपना !

और अपना ही वक़्त बेचता हूँ

पेट भराई के लिए

लेकिन इन्सानियत नहीं बेचता

किसी भी क़ीमत पर नहीं बेचता

क्योंकि मैं

मज़दूर हूँ .....लीडर नहीं !

गरीब हूँ ...काफ़िर नहीं !






















6 टिप्‍पणियां:

  1. मैं बेचता हूँ सिर्फ़ पसीना

    वो भी अपना !

    और अपना ही वक़्त बेचता हूँ

    पेट भराई के लिए

    लेकिन इन्सानियत नहीं बेचता

    किसी भी क़ीमत पर नहीं बेचता

    क्योंकि मैं

    मज़दूर हूँ .....लीडर नहीं !
    बहुत सुंदर । आपकी कविता स्वयं ही सब कह रही है ।

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  2. अरे भ्रष्टाचारियों !

    मैं बेचता हूँ सिर्फ़ पसीना

    वो भी अपना !

    और अपना ही वक़्त बेचता हूँ

    पेट भराई के लिए

    लेकिन इन्सानियत नहीं बेचता

    किसी भी क़ीमत पर नहीं बेचता

    क्योंकि मैं

    मज़दूर हूँ .....लीडर नहीं !

    गरीब हूँ ...काफ़िर नहीं !
    ...behat prabhakari rachna.. sundar prasuti ke liye dhnayavaad

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  3. वाह अलबेला जी बहुत सुन्दर और सटीक अभिव्यक्ति है। बधाई।

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  4. sahab abhi to paribhasha hi ho gai hai ki "jo leta hai, woh neta hai" badi sundar rachna hain.badhai.hindi men likhne men zyada time tagta hai isliye roman me likh raha hoon. kshama karen.
    netaon ke antarman ki baat malum karne ke liya meri kavita padhne ki Zahmat karen-"नेता से साक्षात्कार"
    link: www.mdqamar.blogspot.com

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