मंगलवार, 2 नवंबर 2010
पढ़ने से सस्ता कोई और मनोरंजन नहीं
पढ़ने से सस्ता कोई और मनोरंजन नहीं
न ही कोई ख़ुशी इतनी चिरस्थायी है
- लेडी मौन्टेगू
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रविवार, 31 अक्टूबर 2010
अपने धर्म को भूल जाना सचमुच बुरे से बुरा काम है
अपनी त्रुटि का पता चलने के बाद उसे मिटाने में
थोड़ा भी समय नहीं खोना चाहिए ।
इसी में हम कुछ करते हैं ; यही नहीं बल्कि सच्चा काम करते हैं ।
इसके विपरीत आचरण करके
अपने धर्म को भूल जाना सचमुच बुरे से बुरा काम है
- महात्मा गांधी
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बुधवार, 27 अक्टूबर 2010
फ़र्क देखो प्यार और व्यापार में............
प्यार
को
प्यार रहने दो
व्यापार न बनाओ
व्यापार बनाते हो
तो
प्यार मत जताओ
क्योंकि प्यार लुटने का सोपान है
और व्यापार लूटने का सामान है
व्यवहार
दोनों का भिन्न है
इसीलिए
दुनिया खिन्न है
क्योंके
उत्साह में आ कर अत्यन्त
अतिरेक कर देती है
और दो विपरीत धाराओं को
एकमेक कर देती है
प्यार पपीहे का पावन तप है
जबकि व्यापार बगुला जप है

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मंगलवार, 26 अक्टूबर 2010
या तो ख़ुद फ़रिश्ता हो या सुनने के लिए फ़रिश्ते रखे
आधा घंटा से ज़्यादा उपदेश देने के लिए
आदमी
या तो ख़ुद फ़रिश्ता हो या सुनने के लिए फ़रिश्ते रखे
-व्हाईट फ़ील्ड

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शुक्रवार, 22 अक्टूबर 2010
रिश्ते में तो हम हिन्दी के बेटे हैं और नाम है माणिक मृगेश
आइये मित्रो !
आज मैं आपको मिलवाता हूँ एक ऐसे महान हिन्दी सेवक से
जिनकी पूरी की पूरी जीवनचर्या अपने दैनंदिन रिदम के साथ
लगातार हिन्दी भाषा और हिन्दी साहित्य को समृद्ध करने में
जुटी है ।
अनेकानेक सम्मान और पुरस्कार प्राप्त यह हस्ती पिछले दिनों
एक और बड़े सम्मान से सम्मानित हुई । आइये अपनी बधाइयों
और मंगल कामनाओं के साथ मिलें इण्डियन आयल में सतत
सेवारत, बड़ौदा निवासी एक ज़बरदस्त कलमकार डॉ माणिक
मृगेश जी से.........................




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रविवार, 10 अक्टूबर 2010
केवल 13 घंटे शेष बचे हैं, कृपया जल्द से जल्द अपनी रचना भेजिए व 900 रुपये पुरस्कार प्राप्त कीजिये
प्यारे ब्लोगर साथियो !
हम सब सरस्वती और शब्द-ब्रह्म के साधक उपासक हैं, संयोग से
अभी शारदीय नवरात्र भी चल रहे हैं, ऐसे में यदि कोई स्पर्धा हो
जगत जननी माँ जगदम्बा के वन्दन की, तो क्या हमें बढ़ चढ़ कर
भाग नहीं लेना चाहिए ? लेना चाहिए न ? तो लीजिये............मैंने
कब मना किया ?
मैं तो केवल ये बता रहा हूँ कि इस स्पर्धा का परिणाम घोषित होने में
केवल 13 घंटे शेष बचे हैं इसलिए कृपया जल्द से जल्द अपनी रचना
भेजिए...और वाह वाही के साथ साथ 900 रुपये का नगद पुरस्कार
भी प्राप्त कीजिये।
स्पर्धा के बारे में यदि आपको जानकारी न हो तो ये लिंक देख लीजिये :
http://albelakhari.blogspot.com/2010/10/500-900.html
-अलबेला खत्री
शुक्रवार, 1 अक्टूबर 2010
बहुत याद आएगी आज अहमदाबाद के कवि सम्मेलन में अशोक भट्ट की ..........
आज अहमदाबाद में बहुत बड़ा कवि-सम्मेलन है । राष्ट्रीय स्तर के
इस काव्य-महोत्सव में अनेक सुप्रसिद्ध और नामी-गिरामी
कवि/कवयित्री काव्य प्रस्तुति देंगे ।
मैं भी जा रहा हूँ वहां ....लेकिन आज वो उत्साह नहीं है जो हमेशा
हुआ करता है । पिछले 25 वर्षों में अहमदाबाद के लगभग 300
कवि सम्मेलनों में मैंने काव्यपाठ किया है पर आज पता नहीं क्यों
जाने का मन भी नहीं कर रहा है ।
इस के दो बड़े कारण हैं...पहला तो ये कि जो अक्सर कवि-सम्मेलनों
की रौनक हुआ करते थे वे विद्वान पुरूष और विधानसभाध्यक्ष
श्री अशोक भट्ट अब हमारे बीच नहीं रहे....कल ही उनका अन्तिम
संस्कार हुआ है और दूसरा कारण है अहमदाबाद शहर की संवेदनशीलता
अयोध्या पर आये निर्णय के बाद किसी प्रकार की अशांति की आशंका के
दृष्टिगत अभी घर से बाहर निकलना है तो जोखिम पूर्ण परन्तु जोखिम
का दूसरा नाम ही तो है ज़िन्दगी............
सो जा रहा हूँ....................
भारी मन से ही सहीं, अपना कर्म तो करना ही है
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बुधवार, 29 सितंबर 2010
रविवार, 26 सितंबर 2010
जिसने कहा था मेरा है लम्बा सफ़र बहुत, ज़ंजीर खींच कर वो मुसाफ़िर उतर गया
साहित्य पथ के सुपरिचित माइल स्टोन
कन्हैया लाल नन्दन नहीं रहे
विनम्र श्रद्धांजलि !
जिसने कहा था
मेरा है लम्बा सफ़र बहुत,
ज़ंजीर खींच कर
वो मुसाफ़िर उतर गया
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गुरुवार, 23 सितंबर 2010
लोग नमक घिसने लगते हैं
रिश्ते जब रिसने लगते हैं
तो परिजन पिसने लगते हैं
मत दिखलाना घाव किसी को
लोग नमक घिसने लगते हैं
मंगलवार, 21 सितंबर 2010
दूसरे दिन सुबह पता चला तो सुख हुआ
रात को
कुत्तों ने भौंक - भौंक कर नींद ख़राब कर दी,
इस से भलेमानसों को दुःख हुआ
लेकिन
उस भौंकने से आये हुए चोर भाग गये,
ऐसा दूसरे दिन सुबह पता चला तो सुख हुआ
- विनोबा भावे
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रविवार, 19 सितंबर 2010
यदि अपने स्वभाव पर अडिग रहता तो बेहतर था
जिस प्रकार
हवा
हाथों के इशारे नहीं समझती
आग
आँखों से डरा नहीं करती
पानी
आँचल में क़ैद नहीं हो सकता
अम्बर
किसी एक का हो नहीं सकता
वसुधा
अपनी ममता त्याग नहीं सकती
वो
सिर्फ़ देना जानती है, मांग नहीं सकती
उसी प्रकार
मनुष्य भी
यदि अपने स्वभाव पर अडिग रहता तो बेहतर था
परन्तु इसने निराश किया
अतः परिणाम बहुत ही मारक हो गया
संवर्धन करने वाला ही संहारक हो गया
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हास्यकवि अलबेला खत्री
शुक्रवार, 17 सितंबर 2010
मैं तो फ़क़त इल्तज़ा कर सकता हूँ..........
गन्ध ये बारूद की है शायद
जिसे सहना मेरे बूते से बाहर है
लेकिन मैं सह रहा हूँ
कर कुछ नहीं सकता
इसलिए सिर्फ़ कह रहा हूँ
कि हटादो ये कुहासा
क्योंकि इस सियाह आलम में
महज़ हैवानियत पलती है
बन्दगी को खतरा है
मौत के इस खेल में
ज़िन्दगी को खतरा है
दुनिया पर कब्ज़ा करने की खूंफ़िशां मन्शा वालो !
खबरदार !
तुम ही नहीं, तुम्हारी पुश्तों को भी ले डूबेगी
तुम्हारी खुदगर्ज़ी .........
मैं तो फ़क़त इल्तज़ा कर सकता हूँ
आगे तुम्हारी मर्ज़ी ...............
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शनिवार, 11 सितंबर 2010
आज मेरे हिन्दोस्तान ने असली तिरंगा फहराया है
तन हर्षाया
मन हर्षाया
घर-आँगन हर्षाया है
ऐसा अवसर आया है
एक के घर केशरिया रंग में विघ्नहर्ता की स्थापना
धवल वस्त्र में दूजे के घर संवत्सरी का क्षमापना
तीजे घर में ईद मुबारक, हरियाला क्षीर-खुरमा बना
रंगों की गांठें खुल गईं और गुल ख़ुशी के खिल गये
हम मिले या न मिले, हमारे त्यौहार गले मिल गये
मन्दिर की केसरी
दैरासर की श्वेत
और
मस्जिद की हरी ध्वजा ने दुनिया को दिखलाया है
आज मेरे हिन्दोस्तान ने असली तिरंगा फहराया है

गुरुवार, 9 सितंबर 2010
मैं बेचता हूँ सिर्फ़ पसीना...........
हाँ हाँ
मैंने बेचा है
बेचा है नूर नज़र का
लेकिन
ईमान नहीं बेचा
मैं खाक़ हूँ ...पर पाक हूँ
मेहनतकशी की नाक हूँ
तुम सा नहीं जो वतन को
शान्ति-चैन-ओ-अमन को
माँ भारती के बदन को
पीड़ितजनों के रुदन को
कुर्सी की खातिर
गैरों के हाथ बेच डालूँ
सत्ता के तलवे चाटूं
और चाँदी का जूता खाने के लिए
अपना ज़मीर बेच डालूं
अरे भ्रष्टाचारियों !
मैं बेचता हूँ सिर्फ़ पसीना
वो भी अपना !
और अपना ही वक़्त बेचता हूँ
पेट भराई के लिए
लेकिन इन्सानियत नहीं बेचता
किसी भी क़ीमत पर नहीं बेचता
क्योंकि मैं
मज़दूर हूँ .....लीडर नहीं !
गरीब हूँ ...काफ़िर नहीं !

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बुधवार, 8 सितंबर 2010
ये औरत, आज की औरत है ! इस्पात से बनी है
महक ये कहती है कि गुलात से बनी है
कार्तिक के शबनमी क़तरात से बनी है
नाज़ुकी ऐसी, गोया जज़्बात से बनी है
पर ये सब कयास है
पूरी तरह बकवास है
क्योंकि तज़ुर्बा कहता है कि
दर्दात से बनी है
ज़र्फ़ से, ज़ुर्रत से, ज़ोर के
हालात से बनी है
सुबहा न जिसकी आ सकी,
उस रात से बनी है
ये औरत,
आज की औरत है !
इस्पात से बनी है
इसलिए........................
ज़ुल्म मत कर इस पर
तू इसका एहतराम कर
सारी ख़ुदाई इसकी है,
तू रोज़ इसे सलाम कर

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मंगलवार, 7 सितंबर 2010
देस की ख़ुशबू बसी है उसके हैप्पी होम में, ओम हैं उसमे बसे और वो बसी है ओम में
सुप्रसिद्ध कवयित्री, कथाकार, उपन्यासकार एवं अभिनेत्री
डॉ सुधा ओम ढींगरा के जन्म दिवस पर
रचित एक आत्मिक रचना
करुणा उसका शाश्वत स्वभाव है
पिता के आदर्शों का गहरा प्रभाव है
सम्वेदना सदैव शोणित में बहती है
सचाई उसके सपनों तक में रहती है
जनेता के आँचल का अनमोल मोती है
ऐसी बेटियां अपनी माँ का प्रतिरूप होती हैं
देस की ख़ुशबू बसी है उसके हैप्पी होम में
ओम हैं उसमे बसे और वो बसी है ओम में
सुख - समृद्धि - स्नेह से सुन्दर सजाये रास्ते
माँ से भी कुछ ज़्यादा माँ है वो विभु के वास्ते
मित्रता में वो कृष्ण से कम नहीं है
वो अगर है संग तो कुछ ग़म नहीं है
सुधा है नाम उसका, वो सुधा ही बांटती है
फूल बिखराती है जग में और कांटे छांटती है
शुभ घड़ी फिर उसके आँगन आज आई
जन्मदिन की 'अलबेला' लिखता बधाई

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सोमवार, 6 सितंबर 2010
फिर नयी ऋतु में मिलेंगे
अब बात रहने दो
जज़्बात बहने दो
टूट जाने दो किनारे
छूट जाने दो सहारे
डूब कर जी लें ज़रा सा
ये ज़हर पी लें ज़रा सा
ज़िन्दगी की शाम कर लें
कुछ घड़ी आराम कर लें
फिर नयी ऋतु में मिलेंगे
फिर नये गुलशन खिलेंगे
देह भी अब थक चुकी है
रूह भी तो पक चुकी है
वस्ल का एतमाद रखना
फिर मिलेंगे याद रखना
किसी ख़ुशनुमा मौसम में...........
किसी ख़ुशनुमा आलम में .........
शीराज़ा नाग अभी चारों तरफ़
लगी है आग अभी चारों तरफ़
इसे बुझ जाने दो
इसे बुझ जाने दो
इसे बुझ जाने दो

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