शुक्रवार, 18 दिसंबर 2009
मुझे ये फ़र्ज़ लाज़मी है
द्वार
बन्द नहीं है उसका
लेकिन
मैं खटखटा रहा हूँ
क्योंकि
उसकी अनुमति बिना
भीतर
जाने से सकुचा रहा हूँ
सकुचाना भी चाहिए,
मुझे ये फ़र्ज़ लाज़मी है
मैं तो सिर्फ़ आदमी हूँ
किन्तु वो बड़ा आदमी है
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सत्य वचन... बड़ों का सामना करते वक्त कुछ हिचकिचाहट आ ही जाती है
जवाब देंहटाएंबहुत सही...बड़े आदमी से मिलना है तो संकोच तो होगा ही.
जवाब देंहटाएंवाह..!
जवाब देंहटाएंशिष्टाचार हो तो ऐसा ही!
बिल्कुल सही व सटिक कहा आपने ।
जवाब देंहटाएंबहुत सटीक रचना पर ये समझ नहीं आया की वो आदमी बड़ा कैसे है उम्र में या पैसे में ह..हा ...हा ...हा ...
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