शुक्रवार, 18 दिसंबर 2009

मुझे ये फ़र्ज़ लाज़मी है



द्वार

बन्द नहीं है उसका

लेकिन

मैं खटखटा रहा हूँ

क्योंकि

उसकी अनुमति बिना

भीतर

जाने से सकुचा रहा हूँ



सकुचाना भी चाहिए,

मुझे ये फ़र्ज़ लाज़मी है

मैं तो सिर्फ़ आदमी हूँ

किन्तु वो बड़ा आदमी है



5 टिप्‍पणियां:

  1. सत्य वचन... बड़ों का सामना करते वक्त कुछ हिचकिचाहट आ ही जाती है

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  2. बहुत सही...बड़े आदमी से मिलना है तो संकोच तो होगा ही.

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  3. बिल्कुल सही व सटिक कहा आपने ।

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  4. बहुत सटीक रचना पर ये समझ नहीं आया की वो आदमी बड़ा कैसे है उम्र में या पैसे में ह..हा ...हा ...हा ...

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