रविवार, 20 दिसंबर 2009
मज़ा आता है शायद तुम्हें यूँही जीने में
रुत रंगीली है
सीली सीली है
पवन नशीली है
देह भी गीली है
____ऐसे में याद तुमको किया है
____प्याला मुहब्बत का पिया है
तुम आओ तो बात बन जाये
ये रात, सुहागरात बन जाये
मगर तुम आओगी नहीं
वो आग बुझाओगी नहीं
जो जल रही है लगातार हमारे सीने में
मज़ा आता है शायद तुम्हें यूँही जीने में
तुम न बदल पाओगी अपना चलन
इसलिए जलता ही रहेगा ये बदन
बरसात आये कि न आये
क्या फ़र्क पड़ता है ................
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बेमौसम तो बरसात आती नहीं है.
जवाब देंहटाएंप्यास बढानी होगी.
अच्छी प्रस्तुति
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